कुंडली से जानें क्या आपको भी मिलेगा आपका प्रेम..
किसी किसी के जीवन में प्यार का फूल खिलता है , किसी के जीवन भर यह नही खिलता और इसके लिए तरसता रहता है . जीवन में प्रेम का तत्व महत्वपूर्ण है, इससे जीवन सुखमय होता है लेकिन कलियुग का समय है इसलिए यह महज सेक्स सम्बन्ध तक सीमित हो गया है. ज्योतिष के अनुसार प्रेम के लिए आपके चन्द्रमा ,शुक्र और मंगल का अच्छा होना बहुत जरुरी है. शुक्र, चंद्रमा और मंगल ग्रह ही मुख्यत: आपके प्यार को परवान चढ़ाते हैं यदि ये पंचम भाव और ग्यारहवे और दुसरे भाव पर शुभ प्रभाव डालते हों . ग्यारहवां भाव दोस्ती का है , यह भाव आपको बताता है कि आपके दोस्त कैसे होंगे . ग्यारहवे भाव से पता चलता है कि अमुक व्यक्ति घोखा देगा या किसी के प्रति लायल रहेगा. जब इन भावों पर ग्रहों का प्रभाव ठीक नहीं होता तो प्रेम की जगह सिर्फ वासना होती है , दोस्ती एक छलावा होता है . जातक सिर्फ स्वार्थ के लिए सम्बन्ध बनाता है . यदि ग्यारहवां और पंचम भाव राहू हैसे अशुभ ग्रह के प्रभाव में हो तो व्यक्ति अनेक लोगों से शारीरिक सम्बन्ध बनाता है . ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र को स्त्री ग्रह माना जाता है. पति-पत्नी, प्रेम संबंध, भोग विलास, आनंद आदि का कारक ग्रह भी शुक्र को ही माना जाता है. शुक्र सही स्थिति में और शक्तिशाली हो तो जीवन प्रेम से भर जाता है. ज्योतिष के अनुसार जब जातक की कुंडली में शुक्र और मंगल का योग बन जाता है या इनका आपस में कोई संबंध होता है तो ऐसी स्थिति में आपके जीवन में प्यार की बहार आ सकती है. इसके अलावा पंचम और सप्तम के स्वामी यदि एक साथ आ जायें तो यह स्थिति भी प्रेम जीवन के लिये सकारात्मक योग बनाती है और आपको अपना प्यार मिलने की संभावना प्रबल होती हैं. यदि शुक्र की दृष्टि पंचम पर पड़ रही हो या भी वह चंद्रमा को देख रहा हो तो ऐसी दशा में प्यार आगे बढ़ता है. पंचमेश और एकादशेश का एक साथ बैठना भी आपकी कुंडली में प्रेमयोग को दर्शाता है.
पुरुष की कुंडली में चंद्रमा और शुक्र महत्वपूर्ण होता है . पुरुष को कैसी लडकी मिलेगी यह चन्द्रमा और शुक्र की स्थिति तय करती है. स्त्री की कुंडली में मंगल, बृहस्पती और चन्द्र तय करते हैं कि उसका साथी कैसा होगा . वास्तव में ये चारों ग्रह दोनों की कुंडलियों में महत्वपूर्ण होते हैं . इनकी स्थिति को देखना अवश्यक होता है . स्त्री की कुंडली में सूर्य की स्थिति को भी देखना महत्वपूर्ण होता है क्योकि यह उसकी कुंडली में पुरुष तत्व की स्थिति को स्पष्ट करता है . चंद्रमा की स्थिति पुरुष की कुंडली में स्त्री तत्व की स्थिति को स्पष्ट करता है . चंद्रमा प्रेम के लिए महत्वपूर्ण दोनों की कुंडलियों में इसलिए है कि यह मन का कारक है . जब दोनों के चन्द्र आपस में मिलते हैं तो मन मिलता है और प्रेम आगे बढ़ता है . इसकी स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण है , मान लीजिये कि किसी पुरुष का चंद्रमा वृश्चिक में स्थित है तो वह व्यक्ति किसी से प्रेम नहीं करेगा सिर्फ लडकी का दैहिक शोषण की फ़िराक में रहेगा. यदि महिला उसके वर्चस्व में आ जाती है तो उसे प्रताणित भी कर सकता है . कई प्रेम सम्बन्धों में यह बात सामने आई है जब प्रेमी ने प्रेमिका को प्रेम जाल में फंसाया फिर उसे प्रताणित किया और फिर उसकी हत्या तक कर डाला . किसी पुरुष का चंद्रमा यदि मीन , धनु या मिथुन में है तो वह बहुस्त्रीगामी होगा प्रेमी नहीं . किसी लडकी के पंचम भाव में चन्द्रमा है तो वो कई लड़को के प्रेम में होगी , वह किसी एक से प्रेम नहीं कर सकती है . राहू यदि पंचम में हो या उस पर दृष्टि हो तो व्यक्ति प्रेम करता है लेकिन क्योकि यह एक अशुभ ग्रह है तो इसका अंत ज्यादातर मामलों में शारीरिक सम्बन्ध पर खत्म हो जाता है . यह एक तरफा प्रेम का वह रूप है जिसमें व्यक्ति कभी अपने प्यार के सामने नहीं आता और फिर भी चुपचाप सब कुछ देखता रह जाता है, क्योंकि परिस्थितियां, ग्रह गोचर अनुकूल नहीं रहते हैं. चन्द्रमा यदि मेष राशी में हो तो व्यक्ति प्रेम करने में उत्सुक रहता है , यदि यह 11 वे भाव में स्थित हो तो लड़का या लडकी प्रेम में पड़ते हैं लेकिन उनका स्वभाव स्थिर नहीं रहता , किसी लडकी के 12 में तुला में चन्द्र हो या मंगल हो तो वह छुप कर प्रेम करती है . ऐसे बहुत सारे योग बनते हैं जो जातक को प्रेम की तरफ ले जाते हैं .
प्रेम कब टूट जाता है ?
जब किसी प्रेम देने वाले ग्रह की दशा खत्म होती है और दुसरे विपरीत कारक ग्रह की दशा शुरू होती है तब व्यक्ति की मानसिक अवस्था में परिवर्तन आ जाता है . ग्रहों की कुछ विपरीत स्थितियां भी होती हैं जिनमें आपकी अच्छी खासी लव लाइफ तहस-नहस हो जाती है. आपको लगता है जैसे आपकी या उसकी गलती की वजह से ऐसा हुआ जबकि ऐसा नहीं होता है. प्रेम सम्बन्धों का टूटना पाप ग्रहों की दृष्टि से होता है या उनके अन्तर्दशा में आने से होता है . जब शुक्र और मंगल एक साथ होते हैं तो ऐसे में प्रेम योग तो बन जाता है लेकिन यदि इन पर शनि या केतु की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे में प्रेम संबंध टूट सकते हैं. या कई बार गुरु भी इसमें खलल डाल देता है क्योकि उसे शादी करवानी होती है , जब उसे लगता है ये सम्बन्ध नहीं चलेगा तो उसे तोड़ क्र शादी करवा देता है . कई जातकों की जन्म कुंडली में ऐसे मिलता है जब उनकी प्रेम की जिन्दगी परवान चढ़ रही होती और और इधर गुरु शादी की तैयारी कर रहा होता है . चंद्रमा में शुक्र की युति भी आपकी कुंडली में प्रेमयोग के लिये अच्छी मानी जाती है लेकिन जब इस पर शनि की दृष्टि पड़ती है तो यही एक विष योग बन जाता है जिससे छोटी-छोटी बातों को लेकर आपस में मनमुटाव होने लगते हैं और ब्रेकअप होने तक की नौबत आ जाती है.
प्रेम शादी तक कब पहुंचता है ?
जातक की कुंडली में कई ऐसे योग होते हैं जो उसे उसके प्रेमी से शादी करा देते हैं . प्रेम को शादी में तब्दील होने के लिए जातक के दुसरे , सप्तम और ग्यारहवे भाव का आपस में सम्बन्ध होना जरूरी है साथ में गुरु और शुक्र शुभ स्थिति में हों . विवाह तभी होता है जब उपरोक्त भावो के ग्रह अन्तर्दशा में आते हैं और गुरु हरी झंडी देता है . मंगल और सूर्य का भी शादी में अहम रोल होता है . यदि शादी के समय जब बातचीत आगे बढ़ रही हो और मंगल या शनि या केतु जिनका इस सम्बन्ध कारकत्व नहीं हो गोचर में सप्तम भाव को देखता है तो शादी में दिक्कत आती है या देरी हो सकती है . यदि कोई विरोधी शक्तिशाली ग्रह ट्रांजिट में आये तो जातक की होने वाली शादी बाधित हो जाती है . राहू यदि सप्तम को देखता है या शुक्र को देखता है तो जातक या तो शादी तक नहीं पहुंचता या फिर वह प्रेमिका के साथ लिव इन रिलेशन में रहता है . लेकिन यह कभी स्थिर नहीं होता . शादी के लिए सप्तम भाव को अच्छे से देखना जरूरी होता है .