अंकित राठौड : जिंदगी, डिप्रेशन और मेँ

मन के दरवाज़े ठीक से खुले नही होंगे तो मन मेँ द्वेष कचरा घृणा भर जाता है.. जीवन मेँ प्रेम क़ी आत्मविश्वास क़ी कमी हुई तो मन और जीवन बंज़र सा होने लगता है
हम शरीर क़ी देखभाल और ख्याल तो बहुत रखते है मगर अपने मन का ख्याल रखना भूल जाते है
मन को भी परिश्रम क़ी जरूरत है उसको भी जिम लें जाइये.
मन क़ी सेहत शरीर क़ी सेहत से ज्यादा जरुरी है..

जिंदगी को तनाव और डिप्रेशन से थोड़ा दूर ले जाने की कोशिश में जीवन के इस सफर में अब तक दो बातें बहुत स्पष्ट रूप में सामने आई हैं. पहली हम धन को बहुत अधिक महत्व देते हैं. जबकि धन की शक्ति बहुत सीमित है. उसमें हमें सुविधा देने की अपार क्षमता है लेकिन सुख देने के मामले में धन के हाथ बहुत तंग हैं. दूसरी, डिप्रेशन और तनाव का अगर किसी चीज़ से सबसे अधिक संबंध है तो वह है, मन!
जिसके मन के द्वार मजबूत हैं. रसपूर्ण हैं. स्नेह और आनंद से घिरे हुए हैं, वहां तनाव की दस्तक टल जाती है. मन के दरवाज़े कह देते हैं, तनाव कल आना! जब अगले दिन वह आता है तो मजबूत दरवाज़े, पहरेदार फिर यही बात दोहराते हैं, कल आना. तनाव को समय का बोध नहीं है, वह चुपचाप फिर लौट जाता है. इस तरह सजग पहरेदार अपने मन को डिप्रेशन और तनाव से बचाए रखते हैं.
लेकिन उनका क्या करें जिनके पहरेदार कमजोर हैं. जिन्होंने सारी आस्था और शक्ति कुबेर के चरणों में ही समर्पित की हुई है. धन जरूरी है. उसके बिना जिंदगी की लय बिगड़ सकती है. लेकिन सुविधा से आगे धन की भूमिका अनिवार्य नहीं है. वह जरूरत तक ही उपयोगी है, उसके आगे उसकी भूमिका सीमित है.
मन के दरवाज़े ठीक से खुले नही होंगे तो मन मेँ द्वेष कचरा घृणा भर जाता है.. जीवन मेँ प्रेम क़ी आत्मविश्वास क़ी कमी हुई तो मन और जीवन बंज़र सा होने लगता है
हम शरीर क़ी देखभाल और ख्याल तो बहुत रखते है मगर अपने मन का ख्याल रखना भूल जाते है
मन को भी परिश्रम क़ी जरूरत है उसको भी जिम लें जाइये.
मन क़ी सेहत शरीर क़ी सेहत से ज्यादा जरुरी है.

एक छोटी सी कहानी कहता हूं आपसे. इससे संभव है मेरी बात और स्पष्ट हो जाए. गांव में एक व्यापारी था. उसके पास एक गधा था. बड़ा पुराना और वफादार. एक रोज़ वह एक संकरे कुएं में गिर गया. व्यापारी ने मदद के लिए पड़ोसियों को पुकारा. सब लोग आए और उनका मानना था कि गधे को निकालना बहुत मुश्किल है. लेकिन गधा बार-बार अपने मालिक को पुकारता रहा. पड़ोसियों ने मालिक को समझाया कि इसमें बहुत अधिक समय और धन नष्ट हो सकता है. हमें इसमें कई मजदूरों को लगाना होगा, नई और मजबूत रस्सियां मंगवानी होंगी. इससे अच्छा है इसे निकालने की फिक्र बंद कर दी जाए.
मालिक ने जब सोच विचार किया तो उसे उनकी बात ठीक ही लगी. सब अपने-अपने घर को चले गए. लेकिन गधा तो पुकारता रहा. तब मालिक से पड़ोसियों ने शिकायत करते हुए कहा कि इससे उनकी नींद में खलल पड़ेगा. मालिक ने कहा लेकिन अब दूसरा रास्ता क्या है. एक चतुर पड़ोसी ने सलाह दी सब मिलकर इस कुएं में मिट्टी डाल देते हैं. इससे गधे को मुक्ति मिल जाएगी और हम चैन की नींद सो पाएंगे. इस काम में अधिक मेहनत भी नहीं है.
मालिक को उसकी बात ठीक लगी. संसार की यही गति है. संसार निकालने से अधिक मिट्टी डालने में यकीन रखता है. बचपन से सिखाया यही गया है. इसीलिए तो हम जीवित व्यक्तियों से मिलने कम जाते हैं लेकिन उनके नहीं रहने पर वहां पहुंचना सबसे बड़ा दायित्व समझते हैं. हालांकि कोरोना के आने के बाद संभव है यह भी बदल जाए.
खैर, मालिक पड़ोसियों की बात पर राज़ी हो गया. सब मिलकर मिट्टी डालने लगे. गधा यह देखकर घबरा गया और तेज़-तेज़ मालिक को पुकारने लगा. मालिक को एक पल को ख्याल आया कि बड़ा वफादार गधा है. सभी चतुर पड़ोसी ने कहा भावुक होने की जरूरत नहीं. वैसे भी यह बूढ़ा हो चला था. उधर गधा परेशान! उसे वफादार मालिक से इस तरह की आशा न थी. हम सब को भी अपने-अपने मालिकों से कहां ऐसी आशा होती है. मनुष्य और गधे में मुझे तो बहुत फर्क नहीं दिखता. शरीर तो अलग हैं लेकिन आत्मा की चेतना लगभग एक ही जैसी है!
जब गधे के ऊपर मिट्टी पढ़नी शुरू हुई तो थोड़ी देर में उसने पुकारना बंद कर दिया. उसने बाहर की ओर आशा छोड़कर भीतर की ओर ध्यान लगाया. अब जहां वह खड़ा था उसी जगह हो अपनी पीठ को थोड़ा सा हिलाता और उसके ऊपर डाली जा रही मिट्टी को नीचे करता जाता और स्वयं मिट्टी के ऊपर आता जाता. थोड़े ही प्रयास से उसे बाहर की रोशनी दिखने लगी. जैसे ही हम अपने भीतर गहरे उतरते जाते हैं, रोशनी खुद-ब-खुद हम तक पहुंचने लगती है. थोड़ी देर में गधा बाहर आ गया. मालिक के मन में उसके लिए गुस्सा था. मालिक एक पल को उसे देखकर हैरान रह गया. उसे यह आशा न थी कि गधा इस तरह अपना दिमाग इस्तेमाल कर लेगा. गधे की हमने अनेक कहानियां सुनी हैं लेकिन उसके बुद्धिमान होने की संभवत: यह पहली और आखिरी कहानी है. ‌
इस कहानी में हमारे लिए कितने ही जीवन सूत्र हैं. दुनिया हमारी ओर निराशा, अवसाद, छल और कपट की मिट्टी ही धकेलती रहती है. क्या हम उससे बचने के लिए गधे जितना दिमाग भी नहीं लगा सकते. बस भीतर देखने की देर है. सारा उजाला अंदर ही है! डिप्रेशन और तनाव की सबसे बड़ी जड़ भीतर है. बाहर नहीं. वहां तलाशेंगे तो बहुत सारा उजाला मिल जाएगा.
उनके पास पैसा, शोहरत, कामयाबी यानी वह सबकुछ था, जो किसी की भी हसरत हो सकती है, फिर चाहे आध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज हों या सिलेब्रिटी शेफ एंथनी बॉर्डियन या फिर पुलिस अधिकारी राजेश साहनी। वे जिस मुकाम पर पहुंचे, वहां कम ही लोग पहुंच पाते हैं, फिर भी उन्होंने जिंदगी से मुंह मोड़ लिया। दरअसल, सबकुछ होते हुए भी उदासी/हताशा या डिप्रेशन का दौर कई बार इस कदर घेर लेता है कि इंसान जिंदगी से बेजार हो जाता है। अगर हमारे आसपास ऐसा कोई हो जो डिप्रेशन के दौर से गुजर रहा हो तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने करीबियों को डिप्रेशन से बाहर निकालें।

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