रवीरा भारद्वाज का महिला दिवस पर संदेश: “हर क्षेत्र में महिलाओं को समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए
रवीरा भारद्वाज का महिला दिवस पर संदेश: “हर क्षेत्र में महिलाओं को समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए
महिला दिवस के खास मौके पर अभिनेत्री रवीरा भारद्वाज उन महिलाओं के बारे में बात करती हैं जो उन्हें प्रेरित करती हैं, टेलीविजन में महिलाओं की बदलती छवि पर अपने विचार साझा करती हैं और उद्योग में जिन बदलावों की उम्मीद करती हैं, उन पर चर्चा करती हैं।
जब उनसे पूछा गया कि वह किस महिला को आदर्श मानती हैं, तो वह बिना झिझक जवाब देती हैं, “मैं अपनी मां, डॉ. उमा भारद्वाज को देखती हूं। वह ताकत, गरिमा और बुद्धिमत्ता का प्रतीक हैं। एक पुरुष-प्रधान क्षेत्र में उपकुलपति (Vice Chancellor) के रूप में उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से सभी बाधाओं को पार किया। उन्होंने हमेशा मुझे अपने सपनों का पीछा करने के लिए प्रेरित किया, साथ ही जमीन से जुड़े रहने की सीख भी दी।”
टेलीविजन में महिलाओं के चित्रण पर बात करते हुए वह कहती हैं, “हालांकि सुधार हुआ है, लेकिन अब भी कई टीवी शो महिलाओं को पुराने स्टीरियोटाइप्स में ही दिखाते हैं। हमें ऐसी महिला किरदारों की जरूरत है जो वास्तविक जीवन के संघर्षों और सपनों को दर्शाएं, न कि सिर्फ रिश्तों या त्याग तक सीमित हों।”
उनके अब तक के सबसे खास किरदार की बात करें तो वह कहती हैं, “मेरा किरदार ऐसा क्यूं में मेरे दिल के बहुत करीब था। यह मेरी पहली फिल्म थी, जिसमें मैंने लीड रोल निभाया। इसकी कहानी बहुत मजबूत थी, और किरदार में गहराई, शक्ति और भावनात्मक जुड़ाव था। यह मेरे लिए बहुत खास और संतोषजनक अनुभव रहा।”
हालांकि अब महिलाओं को मजबूत किरदार दिए जा रहे हैं, फिर भी टीवी इंडस्ट्री में जेंडर पे गैप (पुरुषों और महिलाओं की तनख्वाह में अंतर) एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। “हां, यह समस्या आज भी बनी हुई है। भले ही महिला प्रधान शो बढ़ रहे हैं, फिर भी पुरुष कलाकारों को ज्यादा फीस मिलती है। सुधार हो रहा है, लेकिन समान काम के लिए समान वेतन देने का लक्ष्य अभी दूर है।”
वह उद्योग में किस बदलाव की उम्मीद रखती हैं? “मैं चाहती हूं कि ज्यादा महिला प्रधान प्रोजेक्ट्स बनें, जिनमें मजबूत और अच्छे से लिखे गए किरदार हों। साथ ही, कार्यस्थल की बेहतर परिस्थितियां, समान वेतन और सेट पर एक सुरक्षित माहौल भी बहुत जरूरी है। अभिनेत्रियों के साथ-साथ, महिला निर्देशकों, लेखिकाओं और क्रू मेंबर्स को भी समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए।”
क्या सोशल मीडिया ने महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के अपनी बात रखने का मंच दिया है? “पूरी तरह से नहीं। सोशल मीडिया ने महिलाओं को अपनी आवाज उठाने और स्वतंत्र रूप से करियर बनाने का अवसर जरूर दिया है, लेकिन यहां भी भेदभाव बना हुआ है। महिला इन्फ्लुएंसर्स को पुरुषों की तुलना में अधिक आलोचना, ट्रोलिंग और अवास्तविक अपेक्षाओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि, यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म भी है जहां महिलाएं इन मानकों को चुनौती देकर अपनी पहचान खुद बना सकती हैं।”
महिला दिवस हमें इस बात की याद दिलाता है कि प्रगति हो रही है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। रवीरा भारद्वाज मजबूती से परिवर्तन, समानता और हर क्षेत्र में महिलाओं के सम्मान की वकालत करती हैं।